भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उत्पन्न सांप्रदायिक तत्वों की भारत विभाजन में भूमिका

Registration Fee –  5500  per candidate
Duration – 1 Days
Date – 12 Jul 2015
End Date –
Venue -NEW DELHI

आधुनिक भारत में सांप्रदायिकता के विकास की चर्चा करने  से पहले शायद यह उपयोगी होगा कि हम इस शब्द की परिभाषा तय कर लें और उन बुनियादी गलतफहमियों को समझ लें जो इसके साथ लिपटी रही हैं। सांप्रदायिक समस्या हमारे जीवन में इतने लंबे समय से मौजूद रही है कि यह एक बहुत ही साधारण और साफ सी चीज लगती है। लेकिन वास्तविकता शायद इसके विपरीत है। एक ही धर्म मानने वालों के सांसारिक हित यानि राजनीतिक, आर्थिक सामाजिक और सांस्कृतिक हित भी एक जैसे ही होते हैं। सांप्रदायिक विचारधारा के उदय का यह पहला आधार है। इसी से धर्म पर आधारित सामाजिक-राजनीतिक समुदायों की धारणा का जन्म होता है। वर्गांे, जातीय समूहों, भाषाई, सांस्कृतिक जमायतों, राष्ट्रों या प्रांतों और राज्यांे जैसी राजनीतिक क्षेत्रीय इकाइयों के स्थान पर धर्म पर आधारित इन समुदायों को ही भारतीय समाज की बुनियादी इकाइयों के रूप में देखा जाने लगता है। ऐसा मान लिया जाता है कि भारतीय जनता धर्म पर आधारित इन समुदायों के सदस्यों के रूप में ही अपने सामाजिक और राजनीतिक जीवन का संचालन कर सकती है तथा अपने सामूहिक यानि गैर व्यक्तिगत हितों की सुरक्षा कर सकती है। बुनियादी रूप से सांप्रदायिकता ही वह विचारधारा है, जिसके आधार पर सांप्रदायिक राजनीति खड़ी होती है। 




 
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