- वृद्धावस्था के प्रति सही मनोभाव ही सुख-शांति देता है।
- वृद्धावस्था का किसी ऐसे विशेष प्रयोजन के लिए अपनायें जो आपको संतोष दे।
- अपने मनोबल को गिरने से रोकें और उसे सदैव ऊॅचा रखे।
- इस अवधि में आहार परिवर्तन जरूरी हो जाता है, पौष्टिक आहार इस अवस्था में अत्यन्त आवश्यक है।
- पॅंूजी निवेश से लाभ कर में छूट, विविध कर, औचित्य एवं नगदी का पूरा विचार विमर्श करने के उपरांत ही पूॅजी निवेश की योजना बनाएॅ।
- जीवन संध्या में आप किस श्रेणी और कैसी गुणवत्ता की जिन्दगी जियेंगे, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आपके पास कितनी पूूॅंजी है तथा उसे केैसे बजट बनाकर खर्च करते है।
बुढ़ापा जीवन की अनिवार्य शर्त है। जीवन का यह समय ऐसा होता है कि जिसमें संचय का अवसर नहीं होता, केवल व्यय ही करना होता है। इस व्यय के लिए आवश्यक संचय युवावस्था से ही करना होता है। भारतीय संस्कृति में माॅ -बाप अपने बच्चों को पाल-पोष कर बढ़ाकर यह मानने लगते है कि उन्होंने अपने बच्चों पर बहुत उपकार किया है, इस उपकार के बदले में उनकी सारी आशाएॅं, आकाॅंक्षाएॅ बच्चों पर केन्द्रित हो जाती हैं। इसका परिणाम यह होता है कि उनके स्वयं के सारे सपने, अरमान कहीं खो जाते है, उनकी स्वतंत्र सोच नहीं रह जाती है। जब वे 60 वर्ष या अधिक के होने लगते है तो उनके पास स्वयं का काम नहीं हो तो उनके समझ ही नहीं आता कि जीवन को अब कैसे जीना है, दुनियाॅ को कैसे देखना हैं ? इसके लिए वृद्धों को संतानो से अपेक्षा छोड़कर सेवानिवृत्त होेने के बाद का जीवन भी आत्मनिर्भर होकर, स्वास्थ्य, आर्थिक,सामाजिक, मानसिक रूप से मजबूत रहकर जीना चाहिये।