मुगल शासकों के अन्तर्राष्ट्रीय नीतियों तथा संबंधों के स्वरूप और सिद्धान्त, शासकों की व्यक्तिगत योग्यता, स्वभाव, अभिरूचि तथा नीतियों के साथ-साथ उस काल की परिस्थितियों पर निर्भर था। प्रारम्भ में मुगल संरक्षकों का महत्व भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता है जिनकी सहमति के बिना मुगल सम्राट अन्तर्राष्ट्रीय संबंध स्थापित नहीं कर सकता था। सम्राट अकबर ने अपने संरक्षोकत्व से मुक्ति प्राप्त करने के उपरांत साम्राज्यवादी नीतियों के अनुसरण करने की एक वृहद योजना बनाई। परन्तु जिस समय अकबर अन्तर्राट्रीय संबंधों का महत्व समझने वाला था उस समय अकबर के संरक्षक बैरम खाँ ने पर्षिया के साथ राजनीतिक संबंध स्थापित करने का कार्य किया। पर्षिया के शासन के साथ संबंध स्थापित कर मुस्लिम जगत में सम्राट अकबर ने पूर्ण सफलता हासिल की। कंधार की समस्याओं को और उज्जबेग के विद्रोहात्मक आन्दोलन के लिए उचित कदम उठाते हुए सम्राट अकबर ने तटस्थता की नीति का समर्थन कर एक ऐसा कूटनीतिक संबंधों का स्वरूप आरम्भ किया जो सिद्धान्त रूप में मुगल राजसत्ता के अनुकूल तथा सम्राट के लिए हितकारी था।